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शनिवार, 15 अगस्त 2009

नैय्या पार करो!

हे मेरे प्यारे गिरिधारी!
बनाया तूने ये दुनिया न्यारी।
बसे हैं इसमे हर तरह के प्राणी,
पर आज तक देखा ऐसा न कोई,
जो है शुद्ध, गंगा मय्या सी।
इस बड़ी दुनिया में हूँ अकेली,
निस्सहाय। पर हूँ मैं तो तेरी।
आश्रय दो मुझे, हे अन्तर्यामी,
भूल जाओ मेरे हर एक त्रुटी।
तुम्ही जीने के सहारे हो, बनवारी!
दर्शन देने तुम जो आए नहीं,
हाय!रह गई मेरी अक्खियाँ प्यासी।
आशा है मेरे सिर्फ़ तुम्हीं,
बेडा पार करा दो, हे द्वाराकापुरावासी!
तुम नहीं आए दर्शन देने यदि,
कसम है, ये दुनिया छोड़ दूँगी।
नियति  को बदलना जानते हो तुम ही,
क्यों न बचा  दे डूबती कश्ती मेरी?
हे पिया, करती हूँ तुझसे विनती,
अब न सताओ, मैं हूँ दुखियारी।
मैं हूँ तेरे प्रेम की दीवानी,
आजा, नय्या पार करो इस दीवानी की!


मेरे सपनों की दुनिया

मैंने सपने में एक ऐसी दुनिया देखी,
जिसमे न ग़म है, नाम-मात्र के भी,
चारों और हैं बहारों और खुशियाँ ही,
'वैर' शब्द की नाम-निशान ही नहीं।
सब है एक दूसरे के भाई-भाई,
भेद नहीं है जाती-पाँती की।
राम, रहीम, मंजीत, एन्टोनी,
सब हैं मित्र, औ दूसरों का हितकारी।
चारों ओर हैं सिर्फ़ शान्ति ही,
आतंकवादी का नाम भी है नहीं।
एक दूसरे के जीवन की बैसाकी नहीं,
बल्कि हो जाते हैं दिया दिवाली की।
स्त्रियाँ तो है सति-सावित्री,
अपनी हया का सदा ख्याल रखती,
सम्मान के साथ जिंदगी बिताती,
सबके मर्यादा के पात्र बनी रहती।
अगर दुनिया यह मेरी कल्पना की,
मित्य  न होकर, सच्ची होती,
यह दुनिया स्वर्ग बन जाती,
सुख की कविता ही हमेशा निकलती!



यह अजीब बाग़

पंछी हूँ मैं उस बाग़ का ,
जिंदगी है नाम जिसका।
ग़म और खुशी का मेल यहाँ रहता,
यहाँ जीवन-मरण का खेल खेला जाता।
हर कोई 'काम' को साधना मानता,
माया, मोह, ममता में फंसा  रहता।
कोई नहीं यहाँ साथी सच्चा,
जब चाहे हमें  गले लगा लेता,
जी चाहे तो हमें  टुकरा देता।
हर कोई अपना हक़ साबित करना चाहता,
इसकेलिए दूसरों का हक़ भी छीन लेता।
बाग़ है यह रंग-बिरंगा, निरंतर बदलता,
साथ ही हर प्राणी भी बदल जाता।
बदलाव तो हर कोई पसंद करता,
पर यह अजीब मर्म मेरी समझ में न आता।
मुझे तो हमेशा यही लगता,
उचित है सीधा-सादा बनके रहना।
हमेशा पंछी सीधा बनके रहना ,
यही मुझे  खूब सदा भाता,
आख़िर पंछी हूँ मैं भोला-भाला!

गुरुवार, 13 अगस्त 2009

जागो एक बार

ओ दुनियावालों! पागल हो तुम सब तो,
रात-दिन रुपयों के पीछे दौड़ते हो।
काम-क्रोध-मोह-मद से तुम भरे हो,
विषय कामनाओं में सदा डूबे रहते हो।
ईर्ष्या  से तुम जल उठे  हो,
दोसरों की तरक्की पर जलते रहते हो।
अपनों को तुम ठुकरा  देते हो,
अपने हित  के वास्ते वैरों से जुड़ जाते ही।
उस भगवन से मुख मोड़ लेते हो,
उसके संतानों को तुम सताते हो।
खून पीसने की मशीन बन जाते हो,
अपने ही भाइयों की ह्त्या करते हो।
याद रखना, की अंजाम इसका तो,
होगा इतना क्रूर, की तुम्हें भी तो,
झुलसना होगा इस अग्निकुंड में एक दिन तो।
हे मानव! अपने कर्मों से तो ढरो ,
अपनी अंतरात्मा की पुकार ज़रा सुनो।
इस बुरी राह से अब तो हट जाओ,
हे दुनियावालों! कम से कम अब तो जागो!

मैं पंछी मद-मस्त सी

आजाद पंछी हूँ मैं इस बड़े बाग़ की,
विचरण करती हूँ इस दुनिया में अकेली।
कोई भी न है अपनी सखी-सहेली,
फिर भी हूँ मैं मद-मस्ती  से भरी।
परवाह नहीं मुझे ज़रा भी किसीकी,
करती वहीं हूँ जो मैं ठीक  समझती।
अजीब रीत है दुनिया-वालों की,
करते हैं बात सिर्फ़ दूसरों की ही ।
अपने बारे में वे सोचते ही नहीं,
हमेशा बुराई सोचते हैं अपने पड़ोसियों की।
ऐसे में, मैं क्यूं परवाह करूँ उनकी,
क्यूं कुर्बान कर दूं  अपनी  नेकी?
अपनापन  का जब मतलब ही नहीं,
तो मैं क्यूं 'बंदी' बनके रहूँ इस बंधन की?
मुक्ति के राह पर मैं चलूंगी,
परवाह करूंगी सिर्फ अपने गिरिधारी की।
मैं हमेशा बनकर रहूंगी आजाद  पक्षी,
रोक न सकेगा मेरी उड़ान को कोई भी।
मैं बनके रहूंगी पंछी मद-मस्त  सी,
एक दिन ज़रूर इस दुनिया को जीत लूंगी ।



बर्बादी से बचाओ!

आज चारों तरफ है आतंकवादी,
चारों ओर हो रही है बर्बादी,
किसीको इसका चिंता ही नहीं,
पता नहीं कब ये बंद होगी!

लाखों लोग मारे जा रहे हैं,
स्त्रियों का सुहाग उजाड़ रहा है,
बच्चे तो अनाथ हो रहे हैं,
लगता किसीको इसका ख्याल नही है।

ऐसा भी तो एक ज़माना था,
जब चारों ओर खून बहता था।
पर वह खून तो पवित्र था,
चूंकि वह आज़ादी का खून था।

अब तो आज़ादी हम पा चुके,
पर उसे कायम नहीं रख सकते।
अगर चारों ओर आतंकवादी फैलते जाते,
तो शायद हम फिरसे गुलाम बन जाएंगे।

आज हम शैतान के गुलाम बन गए,
पता नहीं कल किसके गुलाम बन जाएंगे।
शायद हम कभी छूट नही सकते,
रक्त के प्यासे खूनियों के अन्जों से।

हमारी भारत माँ रो रही है,
वह बहा रही है आँसू खून के,
आज हमारी यह दशा धेख्के।
पर हाय! किसीको उसकी परवा नही है।

हमें आज यह सब ख़तम करना है,
आतंकवादियों को रोकना है,
दुनिया को भी रोकना है,
बर्बादी की ओर बढने से!



निंदिया

आह! क्या सुख है सोने में,
समझते नही लोग कभी इसे।
निंदिया रानी जब उतर आती है,
मानो, जीवन भर का चैन मिलता है।
निद्रा आने की बस देरी है,
मडराने लगते हैं सपने सुंदर।
दुखों को हम यूँ भूल जाते हैं,
मानो, 'दुःख' शब्द का अर्थ ही नही है।
बन जाते हैं हम बच्चे छोटे,
निंदिया रानी के सामने आके।
अपने कोमल कलैओं से,
रोज़ हमें वह दुलराती हैं।
हमारे थके दिलों को दिलासा देती है,
हमारे सभी दुखों को अपनाती है।
काश! जुदाई का सामना न करना पड़े,
कभी इस दुलार-भरी माता से।

मेरा सनम

किसी परदेशी से मिली अँखियाँ मेरी,
है तो वह ज़रूर एक अजनबी ही।
पर थी करिश्मा उसमे ज़रूर कोई,
की उसके सामने मैं तो हार गई.
अँखियाँ उसकी है जादू से भरी,
मुखड़े में चाँद की रौशनी,
मैं तो हो गयी पर बलिहारी,
करने लगी हर पल इंतज़ार उसकी.
इंतज़ार में खुशी मुझे मिली,
प्रीतम के सपने में खो गयी.
हर पल उसके ख़त की राह देखती,
उसे पाते ही मैं मचल उट्ठी.
हां! इंतज़ार में क्या खुशी थी.
उसका भोला-भोला मुक्कादा मुझे भागी,
मुझे तो बनना है उसके चरणों की दासी.
जिस मनोहर रूप की मैं सपना देखि,
आज इस रूप का मैंने पा ली,
आख़िर नाम भी तो है उसका मनोहर ही,
मैं तो हो गई उसकी प्रेम दीवानी,
करने लगी इंतज़ार सनम से मिलने की.

मैंने इस कविता को ३०-०७-१९९१ में लिखी थी, यानी जब मैं २२ साल की थी.

बुधवार, 12 अगस्त 2009

चन्दा रानी!

ओ चन्दा! तुम तो, ज़रूर बेहद खूबसूरत हो,
दंग रह जाती हूँ, तेरी खूबसूरती देखकर तो।


ये निखरा-निखरा रंग कहाँ से पाई?
अरे, बता ये रहस्य मुझे भी।
तुम्हारे चेहरे पर काला तिल जो है,
इसीलिये नफ़र नहीं लगती तुमपर किसकी।

अरे! कभी बनती तुम तो पूनम प्यारी,
तो बनती कभी नन्ही सी बच्ची प्यारी!
चातेहावी का चाँद भी तुम बन जाती,
तो, कभी अपना ये सुंदर मुख क्यूं छिपती?

चन्दा! तुम तो, ज़रूर बेहद खूबसूरत हो,
दंग रह जाती हूँ, तेरी खूबसूरती देखकर तो

पर मैं तो देखकर तेरी ये खूबसूरती,
मन ही मन, हर रोप जल उठती।
पूछती अपने से, "मैं सुंदर क्यों नही इतनी?"
क्या तुम्हे दूसरों की नज़र का डर नहीं?

चन्दा! तुम तो, ज़रूर बेहद खूबसूरत हो,
दंग रह जाती हूँ, तेरी खूबसूरती देखकर तो

आरी चन्दा, तू बन जा मेरी सहेली,
मुझे बना ले हिस्सेदार, तेरी खूबसूरती की।
क्या तेरी सुन्दरता कम हो जाएगी,
देकर मुझे अपनी सुन्दरता थोडी?

चन्दा! तुम तो, ज़रूर बेहद खूबसूरत हो,
दंग रह जाती हूँ, तेरी खूबसूरती देखकर तो


मंगलवार, 11 अगस्त 2009

तड़प

याद आई जब तेरी,
तीर लगी दिल पे मेरी,
दिल को छीर गई,
हाय, दर्द से मैं कराह उठी!

ये तो बताओ, क्यूं इतनी बेदर्दी?
क्या याद नहीं, तुम्हे मेरी?
क्या कभी याद इस विरहन की न आती,
जिसने तुम्हे जिंदगी बनाई अपनी।

ओ प्रीतम, ये रूखापन छोड़ो,
आकर मुझे गले लगा लो,
ग़म से छुटकारा दिला दो,
इस दीवानी को अपनाओ।

कुछ और नही चाहती दीवानी ये,
बस तेरे चरणों में स्थान दो इसे,
ताकि ये जिंदगी अपनी बिता सके,
चैन, आराम, और खुशी से!

रात-भर रोई थी, तेरी याद में
मेघ काले छाए थे, आंखों के सामने,
शीतल करने के वास्ते, आओ, मेरे प्यारे,
शम्मा जलने आओ, मेरे परवाने!

रविवार, 9 अगस्त 2009

रंग जीवन का!

मुस्कुराया सूरज वह प्यारा,
चारों ओर अपनी स्निग्ध किरणे फैलाया।
मौसम हो गया बहुत सुहाना।
गुनगुनाने लगा एक नन्हा भौरा,
मस्ती में झूमके, प्यार का तराना।
पृथ्वी पर सुख ही सुख छा गया था,
पर, अचानक वहाँ आ टपका,
क्रूर, कुरूप, बादल एक काला।
वह तो था बादलों का नेता,
अपने दल को भी साथ ले आया।
पल भर में सब विकृत हो गया,
नष्ट हो गया पृथ्वी का यह रूप न्यारा।
चारों ओर तो छा गया,
तमतमाता अँधेरा ही अँधेरा।
फिर क्रोध से बरस पड़ा,
वह तूफानी मेघ बड़ा।
देखते ही मेरा दिल भर आया,
पूछने लगी, "ऐसा क्यूँ हुआ?
बादल ने ऐसा क्यूँ किया?
सुख में पली पृथ्वी को क्यूँ तडपाया?"
पर, कुछ ही देर बाद वह चला गया।
फिर से दिवाकर उभर आया,
इन्द्रधनुष को भी संग ले आया।
तब मुझे ऐसा महसूस हुआ,
जैसे, आता तूफ़ान के बाद हमेशा,
इन्द्रधनुष, भोला-प्यारा,सुनहरा,
उसी तरह, हमारे साथ भी होता।
ग़म के कटोर बादलों के बाद,
आता सुख का निखरा रूप हमेशा।
कभी-कभी किसी के मिलाबं होता,
तो कभी उसी से बिछड्ना भी पड़ता।
विरह व्यथा में हमें जलना पड़ता,
पर, ये तो पल भर के लिए होता।
बाद में हमेशा सुख नामक इन्ध्राध्नुष आता।
आखिर यही तो है रंग जीवन का,
इसीलिए ग़म उठाना मुझे बहुत भाता.


और कितना समय चाहिए?

इस दुनिया के लोग तो अजीब हैं,
धन के प्रति उनके मन में लोभ है,
हमेशा दूसरों को नीचा दिखाते हैं,
अपने को सबसे बड़ा मानते हैं।
थोड़ा धन मिलने पर समझते हैं,
के वे ही इस दुनिया के राजा हैं।
भूले से भी औरों की मदद नही करते हैं,
चूंकि, उससे उनकी शान घट जाती है।
हमेशा अपना रॉब जमाते हैं,
चोटी सी बात पर गर्व करते हैं।
मदद तो नही, पर औरों का हानि तो करते हैं।
ये कभी यह नही समझ सकते हैं,
की कल का नाम तो इक सपना है।
यहाँ तो बस दो दिन की बस्ती है,
ये दुनिया और शरीर तो नश्वर है।
अगर ये सब, लोग समझ लेते हैं,
तो, किसी को दुख नही देंगे,
इस दुनिया को स्वर्ग बना देंगे।
पर हाय, ऐसा तो होने में,
पता नही, और कितना समय चाहिए!!


दुनिया पर इल्ज़ाम

मरे हैं अब तक कितने फूल ये,
मिलाया है कौन उन्हें धूल में?

दुनिया! तूने ही खिलने लायक फूल इन्हे,
दुखाया है अपने क्रूर अनय्यायों से।
जलाया है उन कलियों को अगन से,
जल चुके हैं कई विरह की अग्नि में।

मरे हैं अब तक कितने फूल ये,
मिलाया है कौन उन्हें धूल में?

जब खिलने लगे, तूने उन्हें रोका,
लातों से तूने ही इन्हे मारा।
इनके दलों को अन्याय दे दिया,
जब इन्होने न्याय तुमसे माँगा।

मरे हैं अब तक कितने फूल ये,
मिलाया है कौन उन्हें धूल में?

इन्हे प्रेम के बदले में नफरत दिया,
तेरे साथ इंसान भी बदल गया।
पर, बेचारे! इनसे ये नही हुआ,
पर, इनके बरने से तुम्हे क्या मिला?


मरे हैं अब तक कितने फूल ये,
मिलाया है कौन उन्हें धूल में?

इन बिचारों के दिल में विरह जागा,
ओ दुनिया, तेरे प्रति गुस्सा जागा।
क्यूं अपने सर पर पाप उठाया,
की तूने ही इन बिचारों को मारा।

मरे हैं अब तक कितने फूल ये,
मिलाया है कौन उन्हें धूल में?

पाप उठाओ तेरे सर पर,
तुम्ही ने इन्हे मारा पत्थर।
आज लगाती हूँ इल्ज़ाम तुम पर,
तुम्ही ने मारा इन्हे, बेदर्द.



दया करो करूणानिधि!

किसके वास्ते बनाया है गिरिधारी,
तूने, ये दुनिया उतनी भारी।
कभी न देखा इसमे खुशी,
है सिर्फ़ गम और ग्रम ही।

किसी ने न समझा इस दिल को,
प्रीतम ने तोड़ दिया प्रेम को,
हँसते हैं तोडके दिल को,
आख़िर है दिल शीशे जैसे ही तो।

क्यूँ बनाया तूने नीयत ऐसी,
दो प्रेमियों को मिलने न दिया कभी।
टुकाराया है, बस दुनिया तेरी,
हाय तदापके मरने लगी यह बिचारी।

दया नही तेरे दिल में क्या?
इतने क्रूर बने हो कब से, हाँ,
अपनी भक्तों पर करो दया,
अपनाओ उसके प्रेम का दीया!

पुकार साजन का

पुकारा था साल पहले तुमने,
सूना था ज़रूर उसे मैंने।

हाय, मेरे साजन प्यारे साजन,
भूल गए मुझे क्या, साजन,
दुखवा हूँ मैं साजन,
किससे शिकवा करूं बता साजन।

जवाब दिया तेरा वह,
करुण पुकार सुनकर,
पर हाय, इस भीड़ में तो वह,
डूब गया बिना तेरे सुनकर।

पुकारा था साल पहले तुमने,
सूना था ज़रूर उसे मैंने।

दुनिया ने तुम्हे लूटा रे,
आज मैं भी लूट गई हूँ,
तेरा सहारा भी लूटा रे,
अब बताओ मैं कहाँ जाऊं।

आँसू ते पिया ज़रूर मैंने,
फिर भी जिया यह तडपाए।
शम्मा है दिल में मेरे,
फिर भी दुनिया न समझा रे।

पुकारा था साल पहले तुमने,
सूना था ज़रूर उसे मैंने।